भारत के राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रक्रिया तथा उसकी शक्ति
B.A.I-Political Science II
प्रश्न 10. भारत के राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रक्रिया का
वर्णन कीजिए तथा उसकी शक्तियों की विवेचना कीजिए।
अथवा '' भारत के राष्ट्रपति की संकटकालीन (आपातकालीन) शक्तियों का
वर्णन कीजिए।
अथवा '' राष्ट्रपति के निर्वाचन एवं उसकी न्यायिक शक्तियों की
विवेचना कीजिए।
अथवा '' भारत के राष्ट्रपति की संवैधानिक स्थिति का उसकी शक्तियों और
कार्यों को स्पष्ट करते हुए मूल्यांकन कीजिए।
अथवा '' भारत में राष्ट्रपति की शक्तियों एवं स्थिति की
व्याख्या कीजिए।
उत्तर - भारत का राष्ट्रपति
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 52 के अनुसार भारत का एक राष्ट्रपति होगा।
अनुच्छेद 53 के अनुसार संघ की समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी। परन्तु यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि भारत में संसदीय शासन है, जैसा कि इंग्लैण्ड में है। अतः भारत का राष्ट्रपति इंग्लैण्ड के सम्राट् अथवा रानी की तरह संवैधानिक प्रधान ही है, न कि कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान। हम अपने राष्ट्रपति की तुलना अमेरिका के राष्ट्रपति से नहीं कर सकते हैं, क्योंकि अमेरिका में अध्यक्षीय शासन है, जिसमें राष्ट्रपति ही शासन का वास्तविक प्रधान होता है।
राष्ट्रपति का निर्वाचन
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव प्रत्यक्ष के स्थान पर परोक्ष रखा गया है। 'राष्ट्रपति का निर्वाचन एक ऐसा निर्वाचक मण्डल करता है जिसमें दो प्रकार के सदस्य होते हैं
(1) संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य, और
(2) राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य।
राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए संविधान में आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार
एकल संक्रमणीय मत प्रणाली की व्यवस्था की गई है।।
राष्ट्रपति के निर्वाचन में दो बातें और ध्यान देने योग्य हैं
(1) संसद के कुल सदस्यों के मतों की संख्या और समस्त
राज्यों के विधानसभाओं के सदस्यों के मतों की संख्या बराबर होगी।
(2) सभी राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के मतों की संख्या बराबर नहीं होगी, इसके लिए संविधान में निम्न विधि का उल्लेख है
राष्ट्रपति की योग्यताएँ
(1) वह भारत का नागरिक हो,
(2) 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो,
(3) लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यताएँ
रखता हो, तथा
(4) वह केन्द्र, राज्य या स्थानीय सरकार के अन्तर्गत किसी लाभ के
पद पर न हो।
कार्यकाल व पुनर्निर्वाचन-
सामान्यतया राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष होता है। इसके बाद वह पुनः निर्वाचित हो सकता
है और इससे पूर्व भी पद से महाभियोग द्वारा पदच्युत किया जा सकता है और वह
त्याग-पत्र भी दे सकता है। राष्ट्रपति की मृत्यु से भी उसका पद रिक्त हो जाता है।
संविधान राष्ट्रपति के पुनर्निर्वाचन के सम्बन्ध में मौन है, परन्तु फिर भी ऐसा समझा
जाता है कि भारत में भी अमेरिकी पद्धति को ग्रहण किया जा रहा है, क्योंकि डॉ. राजेन्द्र
प्रसाद ने सन् 1962 में बहुमत के समर्थन के बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति वाशिंगटन का अनुकरण करते
हुए तीसरी बार राष्ट्रपति निर्वाचित होना स्वीकार नहीं किया।
रिक्त स्थान की पूर्ति -
किसी भी प्रकार पद खाली हो जाने पर 6 माह के अन्दर नये राष्ट्रपति का निर्वाचन
आवश्यक है। नये राष्ट्रपति के निर्वाचन तक उप-राष्ट्रपति उसके कर्त्तव्यों का पालन
करेगा। नया राष्ट्रपति भी 5 वर्ष तक पद पर रहेगा।
वेतन और उन्मुक्तियाँ -
राष्ट्रपति को ₹1,50,000 प्रतिमाह वेतन मिलता है। राष्ट्रपति
को निःशुल्क निवास-स्थान तथा संसद द्वारा निर्धारित भत्ते भी मिलते हैं। ।
राष्ट्रपति की शक्तियाँ एवं कार्य
संविधान के द्वारा राष्ट्रपति को अनेक शक्तियाँ एवं कार्य सौंपे गए
हैं, जिनका उल्लेख निम्न
प्रकार किया जा सकता है
(1) कार्यपालिका शक्तियाँ -
संविधान
के अनुच्छेद 53(1) के अनुसार, "संघ की
कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति में निहित होंगी, जिनका
प्रयोग वह स्वयं या अपने अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा करेगा।" इस श्रेणी में उसकी निम्नलिखित शक्तियाँ आती हैं
(i) शासन के समस्त कार्य राष्ट्रपति के नाम से होंगे।
(ii) वह प्रधानमन्त्री तथा अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करेगा, मन्त्रियों के मध्य कार्य का विभाजन करेगा।
(iii) वह सेना का प्रधान सेनापति है। वह जल, थल और वायु सेना के सेनापतियों की नियुक्ति करेगा।
(iv) राष्ट्रपति अन्य महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियाँ करेगा; जैसे सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश, मुख्य निर्वाचन आयुक्त, भारत का नियन्त्रक व महालेखा परीक्षक, संघीय लोक सेवा आयोग के सदस्य, भारत के महान्यायवादी, राजदूत, राज्यपाल आदि।
(v) राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री से मन्त्रिपरिषद् के कार्यों की सूचना प्राप्त करता है और वह किसी ऐसे मामले को मन्त्रिपरिषद् के विचारार्थ भेज सकता है जिस पर किसी विभाग से मन्त्री का निर्णय हो गया है, परन्तु समस्त मन्त्रिपरिषद् का नहीं।
(2) विधायिनी शक्तियाँ-
राष्ट्रपति संसद
का अभिन्न अंग है, अतः विधायिनी क्षेत्र
में उसे महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ प्राप्त हैं
(i) वह संसद के अधिवेशनों को आहूत करता है और सत्रावसान करता है।
(ii)
वह लोकसभा को भंग कर सकता है।
(iii) वह संसद के एक सदन या दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में अभिभाषण देता है और सन्देश भेज सकता है।
(iv) संसद द्वारा पारित विधेयक को अधिनियम बनाने के लिए राष्ट्रपति की स्वीकृति अनिवार्य है। साधारण विधेयक को वह एक बार संसद के पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है।
(v) जब संसद का अधिवेशन न चल रहा हो, तो राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है, जिसका प्रभाव कानून जैसा होता है।
(vi) वह राज्यसभा में 12 सदस्यों को नामजद करता है, जो विज्ञान, कला, साहित्य व समाज-सेवा के क्षेत्र में विशिष्ट व्यक्ति हैं।
(vii) कुछ विशेष प्रकार के विधेयकों को पेश करने से पहले उसकी स्वीकृति आवश्यक है।
(viii) राज्यों के सम्बन्ध में भी उसे कुछ विधायिनी शक्तियाँ प्राप्त हैं।
(3) न्यायिक शक्तियाँ-
राष्ट्रपति को
न्यायालयों द्वारा दण्डित व्यक्तियों को क्षमा करने या उसकी सजा कम करने का अधिकार
है। इस अधिकार का प्रयोग वह तीन स्थितियों में कर सकता है
(i) यदि दण्ड किसी सैनिक न्यायालय द्वारा दिया गया हो,
(ii) यदि दण्ड ऐसे मामलों में दिया गया हो जो केन्द्र कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत आते हों, और
(iii) यदि अपराधी को मृत्युदण्ड दिया गया हो।
(4) वित्तीय शक्तियाँ-
राष्ट्रपति के
नाम से ही वित्त मन्त्री प्रतिवर्ष संसद में बजट पेश करता है। राष्ट्रपति की
अनुमति के बिना कोई भी वित्त विधेयक लोकसभा में प्रस्तावित नहीं किया जा सकता है।
राष्ट्रपति ही प्रतिवर्ष लेखा परीक्षक की रिपोर्ट, वित्त आयोग की सिफारिशें आदि संसद के समक्ष रखवाता है। भारत की आकस्मिक
निधि पर उसी का नियन्त्रण होता है।
(5) राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ -
संविधान के
अनुच्छेद 352 से लेकर अनुच्छेद 360
तक आपातकालीन प्रावधानों का उल्लेख है।
आपातकाल की घोषणा के लिए परिस्थितियाँ
(1)
अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत जब किसी
बाह्य आक्रमग अथवा किसी आन्तरिक सशस्त्र विद्रोह के कारण देश की सुरक्षा के लिए
कोई घोर संकट उत्पन्न हो गया हो।
(2) अनुच्छेद 356 के अन्तर्गत यदि भारतीय संघ के किसी राज्य में संविधान के अनुसार शासन चलाना असम्भव हो गया हो, तो राष्ट्रपति उस राज्य में संवैधानिक आपातकाल की घोषणा कर सकता है।
(3) अनुच्छेद 360 के अन्तर्गत वित्तीय संकट की घोषणा करने की व्यवस्था है, जबकि राष्ट्र की अर्थव्यवस्था डगमगा गई हो।
उपर्युक्त तीनों परिस्थितियों का विस्तृत विवरण
निम्न प्रकार है(1) बाह्य आक्रमण, युद्ध अथवा सशस्त्र विद्रोह के कारण घोषणा –
विदेशी आक्रमण के आधार पर राष्ट्रपति को संकटकाल घोषित करने का अधिकार दिया गया है। यह आवश्यक नहीं है कि इस आधार पर संकटकाल की घोषणा तभी की जाए जब देश वास्तव में युद्ध में फँस गया हो। युद्ध की आशंका होने पर भी इस अधिकार का प्रयोग किया जा सकता है। लिखित रूप में इस अधिकार के प्रयोग के लिए मन्त्रिमण्डल राष्ट्रपति से अनुरोध करता है। यदि देश में सशस्त्र विद्रोह की आशंका हो अगवा देश के किसी भाग के लिए असुरक्षा उत्पन्न हो गई हो, तो इस अधिकार का प्रयोग किया जा सकता है। संविधान के 44वें संशोधन द्वारा यह आवश्यक कर दिया गया है कि राष्ट्रपति आपातकाल की घोषणा केवल तभी करेगा जब मन्त्रिमण्डल का निर्णय उसके समक्ष लिखित रूप में प्रस्तुत किया जाए।
संसदीय स्वीकृति -
आपात घोषणा पर संसद की स्वीकृति लेना आवश्यक है। यदि उस समय संसद का अधिवेशन चल रहा हो, तो घोषणा-पत्र जारी करने की तिथि से 1 माह की अवधि तक लागू रह सकेगा। इसकी स्वीकृति के लिए संसद के दोनों सदनों का 2/3 बहुमत आवश्यक है। यदि आपातकाल की घोषणा करने के पूर्व ही लोकसभा भंग हो गई हो अथवा घोषणा के पश्चात् लोकसभा को भंग कर दिया गया हो, उस स्थिति में राज्यसभा की स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक है। राज्यसमा एक स्थायी सदन है। नई लोकसभा निर्मित होने तक घोषणा लागू रहेगी। नई लोकसभा निर्मित होने के पश्चात् पहली बैठक के 30 दिन के अन्दर अन्दर लोकसभा के द्वारा इसे स्वीकार किया जाना आवश्यक है। यदि ऐसा नहीं होता, तो यह स्वयं ही समाप्त समझा जाएगा। 25 जून, 1975 को इसी अनुच्छेद के अंतर्गत आपातकाल की घोषणा की गई थी।
प्रभाव ( i) राज्य सूची के विषयों पर संसद को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
(ii) राज्यों की कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में केन्द्र निर्देश दे
सकता है।
(iii) राष्ट्रपति केन्द्र व राज्यों के मध्य आय के वितरण के सम्बन्ध में निर्देश दे सकता है, किन्तु इन आदेशों पर संसद की स्वीकृति तुरन्त होना आवश्यक है।
(iv)
अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त स्वतन्त्रताओं को नियम बनाकर निलम्बित किया जा सकता है।
(v) संवैधानिक उपचारों को प्राप्त करने की व्यवस्था को भी समाप्त किया जा सकता है।
(vi) संसद की अवपि 1 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है।
(2) संवैधानिक आपातकाल -
गवर्नर की
रिपोर्ट पर संवैधानिक आपातकाल की घोषणा भारतीय के किसी भी राज्य में की जा सकती
है। अनुच्छेद 356
के अन्तर्गत की गई इस घोषणा 2 माह की अवधि में
संसद की स्वीकृति होना आवश्यक है। इस अवधि में लोकसभा भंग होने की स्थिति में
राज्यसभा की स्वीकृति आवश्यक है। इस प्रकार की उद्घोषणा की अवधि 3 वर्ष से अधिक नहीं होगी।
प्रभाव– (i) राज्य की कार्यपालिका शक्ति को राष्ट्रपति अपने हाथों में ले सकता है।
(ii) राज्य विधानमण्डल की शक्तियों का प्रयोग संसद के हाथों में आ जाता
(iii) उच्च न्यायालय में निहित शक्तियों को हस्तान्तरित नहीं किया जा सकता।
(iv) यदि संसद चाहे तो भंग राज्य विधानमण्डल की शक्तियों को राष्ट्रपति अथवा किसी अन्य अधिकारी को हस्तान्तरित कर सकती है।
(v) लोकसभा के अधिवेशन तक राष्ट्रपति संचित निधि से व्यय के लिए आदेश दे सकता है।
(3) वित्तीय आपातकाल -
अनुच्छेद 360
के अन्तर्गत यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि देश में
वित्तीय संकट उत्पन्न हो गया है, तो वह देश में वित्तीय आपात
की घोषणा कर सकता है। अभी तक एक बार भी इसका प्रयोग नहीं हुआ है। इस उद्घोषणा की
अवधि 2 माह होगी। लोकसभा भंग होने की स्थिति में राज्यसभा की
स्वीकृति आवश्यक है। नवनिर्मित लोकसभा की अपनी बैठक की तिथि से 30 दिन के अन्दर उस पर स्वीकृति होना आवश्यक है।
प्रभाव- (i) उद्घोषणा की अवधि में संघ सरकार राज्य सरकारों को आदेश दे.सकती है।
(ii) केन्द्र तथा राज्य सरकारों के कर्मचारियों के वेतन में कमी की जा सकती है, किन्तु सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय तथा लोक सेवा आयोग के सदस्यों को इस प्रावधान से मुक्त रखा गया है।
(iii) राज्य विधानमण्डलों द्वारा स्वीकृत बजटों को अपनी स्वीकृति के लिए मंगा सकता है।
राष्ट्रपति की संवैधानिक स्थिति
डॉ. भीमराव अम्बेडकर, बी. एन. राव तथा सीतलवाड़ के अनुसार राष्ट्रपति की स्थिति एक संवैधानिक शासक की है। भारत में राष्ट्रपति की स्थिति वही है जो इंग्लैण्ड में सम्राट् की है।
उसके तीन अधिकार
हैं-
(1)-सलाह देना,
(2)-सलाह लेना
तथा
(3)-चेतावनी
देना।
वह राज्य का
अध्यक्ष है, न कि कार्यपालिका का।
कार्यपालिका व्यवस्थापिका के नियन्त्रण में कार्य करती है। वास्तविक सत्ता
मन्त्रिमण्डल के पास है, जिसका नेतृत्व प्रधानमन्त्री करता
है। अनुच्छेद 74(1) का यही भाव है। यद्यपि
आदेश राष्ट्रपति के नाम से निकलते हैं, किन्तु उसके पीछे
निर्णय मन्त्रिमण्डल के होते हैं। मन्त्रिमण्डल तथा संसद द्वारा स्वीकृत
प्रस्तावों पर उसे अपनी अनुमति देनी पड़ती है, चाहे वह उसकी
इच्छा के विरुद्ध ही क्यों न हो ।
Motivational speech
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